ट्रेडिंग में टारगेट प्राइस कैसे सेट करें? सही तरीके, टिप्स और गलतियों से बचने की पूरी गाइड
अगर आप शेयर मार्केट या क्रिप्टोकरेंसी में ट्रेडिंग करते हैं, तो एक सवाल जरूर आता होगा: "टारगेट प्राइस कैसे डिसाइड करें?" बिना टारगेट के ट्रेडिंग करना, बिना मैप के सफर करने जैसा है। कुछ ट्रेडर्स लालच में टारगेट बढ़ा देते हैं, तो कुछ डर के मारे जल्दी एक्जिट कर लेते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि साइंटिफिक तरीके से टारगेट प्राइस कैसे सेट करें जो आपकी प्रॉफिट चांस बढ़ाए और रिस्क कम करे।
टारगेट प्राइस क्या होता है? (What is Target Price in Hindi)
सिंपल भाषा में समझें तो टारगेट प्राइस वो प्राइस लेवल है जहां आपको अपना ट्रेड बंद करके प्रॉफिट बुक करना होता है। मान लीजिए आपने ₹100 में एक शेयर खरीदा। अब आपका एनालिसिस कहता है कि यह ₹120 तक जा सकता है। तो ₹120 आपका टारगेट प्राइस हुआ। इसे सेट करना इसलिए जरूरी है ताकि:
- आप इमोशंस (लालच या डर) से बच सकें
- रिस्क कंट्रोल में रहे
- डिसिप्लिन्ड ट्रेडिंग हो सके
टारगेट प्राइस सेट करने के 5 प्रैक्टिकल तरीके (5 Scientific Methods)
1. सपोर्ट-रेजिस्टेंस लेवल का इस्तेमाल (Support & Resistance)
टेक्निकल एनालिसिस की ये सबसे पुरानी और भरोसेमंद ट्रिक है। रेजिस्टेंस वो लेवल होता है जहां प्राइस ऊपर जाने में मुश्किल महसूस करता है। चार्ट पर पिछले कुछ दिनों/हफ्तों के हाइगेस्ट पॉइंट्स को जोड़कर आप रेजिस्टेंस लाइन बना सकते हैं। उदाहरण के लिए:
- अगर कोई स्टॉक पिछले 1 महीने में ₹150 को 3 बार टच करके वापस आया है, तो ₹150 स्ट्रॉन्ग रेजिस्टेंस है।
- अगर आपने ₹120 में खरीदा है, तो ₹150 आपका पहला टारगेट हो सकता है।
टिप: जब प्राइस रेजिस्टेंस को तोड़ दे, तो अगला टारगेट पिछले हाइ (All-Time High) देखें।
2. फिबोनाची रिट्रेसमेंट टूल (Fibonacci Retracement)
ये टूल थोड़ा टेक्निकल लगता है, लेकिन समझने में आसान है। मान लीजिए कोई शेयर ₹100 से गिरकर ₹70 आया है। अब जब वो वापस ऊपर जाएगा, तो कितना जाएगा? फिबोनाची टूल यही बताता है।
- चार्ट पर लो प्राइस से हाई प्राइस तक लाइन खींचें
- खास लेवल: 38.2%, 50%, 61.8% और 78.6%
- अगर शेयर ₹70 से वापस ऊपर जा रहा है, तो पहला टारगेट होगा ₹70 + (₹100-₹70) का 38.2% = ₹70 + ₹11.46 = ₹81.46
क्यों काम करता है: बहुत सारे ट्रेडर्स इन लेवल्स पर टारगेट सेट करते हैं, इसलिए यहाँ प्राइस रिएक्शन होता है।
3. रिस्क-रिवार्ड रेश्यो (Risk-Reward Ratio)
यहाँ आप पैसे के हिसाब से टारगेट तय करते हैं। सुनहरा नियम: रिस्क से कम से कम 2 गुना रिवार्ड। उदाहरण:
- खरीदा: ₹100 पर
- स्टॉप लॉस: ₹95 (रिस्क = ₹5 प्रति शेयर)
- टारगेट प्राइस: ₹110 (रिवार्ड = ₹10, यानी रिस्क का 2 गुना)
अगर आपका स्टॉप लॉस ₹95 है, तो टारगेट ₹105 न रखें। इससे रिस्क-रिवार्ड 1:1 हो जाता है जो लॉन्ग टर्म में फायदेमंद नहीं है।
4. मूविंग एवरेज (Moving Averages)
मूविंग एवरेज ट्रेंड को समझने में मदद करता है। आमतौर पर 50-DMA (50 दिन का मूविंग एवरेज) और 200-DMA का इस्तेमाल होता है।
- अगर प्राइस 200-DMA से ऊपर है और ऊपर जा रहा है, तो टारगेट अगला रेजिस्टेंस लेवल हो सकता है
- अगर प्राइस 50-DMA को क्रॉस करे, तो वो नया सपोर्ट/रेजिस्टेंस बन सकता है
उदाहरण: टाटा मोटर्स का शेयर अगर 50-DMA (₹500) को तोड़कर ऊपर जाता है, तो ₹550 (पिछला हाई) टारगेट बना सकते हैं।
5. ब्रेकआउट्स और वॉल्यूम (Breakouts with Volume)
जब कोई स्टॉक लंबे समय के रेंज (जैसे ₹90-₹100) को तोड़कर ऊपर जाता है, तो उसे ब्रेकआउट कहते हैं। यहाँ टारगेट सेट करने का फॉर्मूला:
- टारगेट = ब्रेकआउट पॉइंट + रेंज की ऊंचाई
- उदाहरण: रेंज था ₹90-₹100 (ऊंचाई = ₹10)। ब्रेकआउट हुआ ₹101 पर। टारगेट = ₹101 + ₹10 = ₹111
कंफर्मेशन: ब्रेकआउट दिन वॉल्यूम पिछले दिनों से ज्यादा होना चाहिए, वरना फेक ब्रेकआउट हो सकता है।
टारगेट प्राइस सेट करते समय ये 5 गलतियाँ न करें (Common Mistakes)
- लालच में टारगेट बढ़ाना: अगर शेयर टारगेट को हिट करके आगे जा रहा है, तो स्टॉप लॉस को ट्रेल करें (जैसे ₹110 टारगेट हिट होने पर स्टॉप लॉस ₹105 कर दें), न कि टारगेट बढ़ाएं।
- टारगेट के पीछे भावनात्मक कारण: "मुझे ₹200 चाहिए क्योंकि मेरा जन्मदिन है" जैसी थिंकिंग से बचें।
- समय न देखना: अगर टारगेट 1 हफ्ते में हिट नहीं हो रहा और मार्केट कंडीशन बदल गई है, तो टारगेट री-एवैल्यूएट करें।
- एक ही मेथड पर भरोसा: 2-3 तरीकों से कंफर्म करके ही टारगेट फिक्स करें (जैसे सपोर्ट-रेजिस्टेंस + फिबोनाची)।
- स्टॉप लॉस न लगाना: टारगेट से ज्यादा जरूरी स्टॉप लॉस है। उसे हमेशा सेट करें।
टारगेट प्राइस के लिए 3 बेस्ट प्रैक्टिसेज (Pro Tips)
- पार्शियल प्रॉफिट बुकिंग: अगर टारगेट ₹120 है, तो ₹115 पर 50% हिस्सा बेच दें। बाकी को टारगेट तक जाने दें।
- ट्रेलिंग स्टॉप लॉस: जैसे-जैसे प्राइस टारगेट की तरफ बढ़े, स्टॉप लॉस को भी ऊपर शिफ्ट करें। जैसे खरीदा ₹100, स्टॉप लॉस ₹95। जब प्राइस ₹110 पहुंचे तो स्टॉप लॉस ₹105 कर दें।
- मार्केट कंटेक्स्ट मैटर्स: अगर Nifty तेजी से गिर रहा है, तो अकेले स्टॉक के टारगेट पर जिद न करें। सेफ्टी के लिए जल्दी एक्जिट कर लें।
निष्कर्ष: आखिरी बात
टारगेट प्राइस सेट करना एक साइंस + आर्ट है। कोई एक परफेक्ट फॉर्मूला नहीं है, लेकिन जो ट्रेडर्स डिसिप्लिन से टारगेट और स्टॉप लॉस फॉलो करते हैं, वो लॉन्ग टर्म में जरूर कमाते हैं। शुरुआत में छोटे टारगेट (2-5% प्रॉफिट) के साथ प्रैक्टिस करें। जैसे कॉन्फिडेंस बढ़े, वैसे ही टारगेट ऑप्टिमाइज़ करें। याद रखें: ट्रेडिंग में सबसे बड़ा स्किल पैसा कमाना नहीं, बल्कि रिस्क कंट्रोल करना है।
FAQs: टारगेट प्राइस से जुड़े सवाल-जवाब
1. क्या शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग के टारगेट अलग होते हैं?
हाँ! इंट्राडे में टारगेट छोटा होता है (0.5-3%), जबकि स्विंग ट्रेडिंग (1-4 हफ्ते) में 5-15% टारगेट रख सकते हैं। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के टारगेट कंपनी के फंडामेंटल पर डिपेंड करते हैं।
2. अगर टारगेट हिट होने से पहले मार्केट रिवर्स करे तो क्या करें?
अगर प्राइस आपके एंट्री प्राइस के पास आ जाए, तो बिना लॉस के निकल जाएं। अगर प्रॉफिट में हैं लेकिन टारगेट नहीं हिट हुआ, तो पार्शियल एक्जिट (आधा हिस्सा बेच दें) कर सकते हैं।
3. क्या टारगेट प्राइस हमेशा एकदम सही होना चाहिए?
नहीं! टारगेट एक "जोन" होता है। जैसे अगर आपका टारगेट ₹120 है, तो ₹118-₹122 के बीच कभी भी बुकिंग कर सकते हैं। एक्सैक्ट प्राइस के पीछे भागना गलती है।
4. स्टॉप लॉस और टारगेट प्राइस में क्या रिलेशन है?
दोनों साथ-साथ चलते हैं। टारगेट सेट करने से पहले स्टॉप लॉस तय करें। रिस्क-रिवार्ड रेश्यो 1:2 या उससे बेहतर होना चाहिए।
5. क्या फंडामेंटल एनालिसिस से टारगेट सेट कर सकते हैं?
हाँ। PE रेश्यो, ग्रोथ एस्टिमेट्स और इंडस्ट्री कंपेरिजन से फेयर वैल्यू निकाल सकते हैं। जैसे अगर किसी कंपनी का PE इंडस्ट्री PE से कम है और ग्रोथ अच्छी है, तो फेयर वैल्यू = करंट PE × (इंडस्ट्री PE / करंट PE) × EPS हो सकता है।
6. टारगेट मिस हो जाने पर इमोशंस कैसे कंट्रोल करें?
ट्रेडिंग प्लान पहले से बना लें। जैसे: "अगर प्राइस टारगेट के 90% तक पहुंचकर वापस आए, तो 70% प्रॉफिट बुक कर लूंगा"। प्लान फॉलो करें, चाहे मार्केट कुछ भी करे।
7. क्या क्रिप्टो ट्रेडिंग में भी यही मेथड्स काम करते हैं?
हाँ! सपोर्ट/रेजिस्टेंस, फिबोनाची जैसे टूल्स क्रिप्टो में भी वर्क करते हैं। बस क्रिप्टो में वॉलैटिलिटी ज्यादा होती है, इसलिए स्टॉप लॉस थोड़ा लूज रखें।
8. टारगेट प्राइस कैलकुलेटर टूल क्या अच्छे हैं?
TradingView, Upstox Pro, Zerodha Kite पर बिल्ट-इन टूल्स (फिबोनाची, मूविंग एवरेज) इस्तेमाल करें। फ्री में ये काफी हैं।
9. क्या टारगेट प्राइस हिट होने के बाद शेयर खरीदना चाहिए?
नहीं! टारगेट प्राइस वह लेवल है जहां एक्जिट करना है। एंट्री के लिए सपोर्ट लेवल या ब्रेकआउट देखें। टारगेट हिट होने पर शेयर ओवरवैल्यूड हो सकता है।
10. कितने टारगेट एक साथ सेट करने चाहिए?
शुरुआत में 1-2 टारगेट काफी हैं। जैसे: टारगेट-1 (छोटा प्रॉफिट) और टारगेट-2 (बड़ा प्रॉफिट)। टारगेट-1 पर 50% बेच दें, बाकी टारगेट-2 तक रहने दें।
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