डेरिवेटिव मार्केट क्या है और डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे काम करती है – पूरी जानकारी हिंदी में

स्टॉक मार्केट में निवेश और ट्रेडिंग की दुनिया बहुत विशाल और रोचक है। अगर आपने कभी स्टॉक मार्केट के बारे में सुना है, तो शायद "डेरिवेटिव मार्केट" और "डेरिवेटिव ट्रेडिंग" जैसे शब्दों से भी परिचित होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये असल में क्या हैं? डेरिवेटिव मार्केट एक ऐसा बाजार है जहाँ पर डेरिवेटिव्स का व्यापार होता है। डेरिवेटिव्स ऐसे वित्तीय साधन होते हैं जिनका मूल्य किसी अन्य संपत्ति, जैसे कि स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी, या मुद्रा, से लिया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो यह एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट होता है जो भविष्य में किसी संपत्ति को खरीदने या बेचने के लिए बनाया जाता है। इस लेख में, हम स्टॉक मार्केट में डेरिवेटिव मार्केट और डेरिवेटिव ट्रेडिंग के बारे में विस्तार से जानेंगे, ताकि आप इस विषय को अच्छी तरह से समझ सकें और स्टॉक मार्केट में निवेश के इस महत्वपूर्ण हिस्से का लाभ उठा सकें।

डेरिवेटिव क्या हैं? (What are Derivatives?)

डेरिवेटिव्स ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं जो दो पक्षों के बीच बनाए जाते हैं। इनका मूल्य किसी दूसरी संपत्ति, जिसे हम "अंतर्निहित संपत्ति" कहते हैं, पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, अगर हम स्टॉक मार्केट की बात करें, तो एक कंपनी के शेयर का डेरिवेटिव उस शेयर के मूल्य पर आधारित होगा। इसका मतलब यह है कि डेरिवेटिव का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि उस शेयर का मूल्य बाजार में ऊपर जा रहा है या नीचे। डेरिवेटिव्स का उपयोग कई कारणों से किया जाता है, जैसे कि जोखिम को कम करना, भविष्य के मूल्य से लाभ कमाना, या बाजार में मूल्य के अंतर का फायदा उठाना।


डेरिवेटिव के प्रकार (Types of Derivatives)

डेरिवेटिव्स के कई प्रकार होते हैं, लेकिन स्टॉक मार्केट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले दो प्रकार हैं: फ्यूचर्स (Futures) और ऑप्शंस (Options)। इसके अलावा, कुछ अन्य प्रकार जैसे स्वैप्स (Swaps) और फॉरवर्ड्स (Forwards) भी होते हैं। आइए इनके बारे में आसान भाषा में समझते हैं:

  1. फ्यूचर्स (Futures)
    फ्यूचर्स एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें खरीदार और विक्रेता यह तय करते हैं कि वे भविष्य में एक निश्चित तारीख पर एक निश्चित मूल्य पर संपत्ति का लेन-देन करेंगे। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप एक कंपनी के शेयर का फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं, जिसका मूल्य ₹100 है और यह एक महीने बाद खत्म होगा। इसका मतलब है कि एक महीने बाद आपको वह शेयर ₹100 पर खरीदना होगा, चाहे उस समय उसका बाजार मूल्य कुछ भी हो।
  2. ऑप्शंस (Options)
    ऑप्शंस में दो प्रकार होते हैं: कॉल ऑप्शन (Call Option) और पुट ऑप्शन (Put Option)
    • कॉल ऑप्शन: यह आपको एक निश्चित मूल्य पर संपत्ति खरीदने का अधिकार देता है, लेकिन मजबूरी नहीं। उदाहरण के लिए, अगर आप ₹100 के स्ट्राइक प्राइस पर एक कॉल ऑप्शन खरीदते हैं और शेयर का मूल्य ₹110 हो जाता है, तो आप इसे ₹100 पर खरीदकर लाभ कमा सकते हैं।
    • पुट ऑप्शन: यह आपको एक निश्चित मूल्य पर संपत्ति बेचने का अधिकार देता है। अगर शेयर का मूल्य ₹100 से नीचे चला जाता है, तो आप इसे ₹100 पर बेचकर नुकसान से बच सकते हैं।
  3. स्वैप्स (Swaps)
    स्वैप्स में दो पक्ष भविष्य में नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान करते हैं। यह ज्यादातर ब्याज दरों या मुद्रा से जुड़े लेन-देन में इस्तेमाल होता है।
  4. फॉरवर्ड्स (Forwards)
    फॉरवर्ड्स फ्यूचर्स की तरह ही होते हैं, लेकिन ये स्टॉक एक्सचेंज पर नहीं, बल्कि ओवर-द-काउंटर (OTC) बाजार में ट्रेड होते हैं।

स्टॉक मार्केट में फ्यूचर्स और ऑप्शंस सबसे लोकप्रिय हैं, इसलिए हम इन पर ज्यादा ध्यान देंगे।


डेरिवेटिव मार्केट कैसे काम करता है? (How Does the Derivatives Market Work?)

डेरिवेटिव मार्केट में ट्रेडर्स इन कॉन्ट्रैक्ट्स को खरीदते और बेचते हैं। यह ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज जैसे कि NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) और BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) पर होती है। डेरिवेटिव्स का उपयोग तीन मुख्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है:

  • हेजिंग (Hedging): इसका मतलब है जोखिम को कम करना। अगर आपके पास शेयर हैं और आपको लगता है कि उनका मूल्य गिर सकता है, तो आप पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं ताकि नुकसान से बच सकें।
  • स्पेक्युलेशन (Speculation): यह भविष्य में मूल्य के बदलाव से लाभ कमाने के लिए किया जाता है। अगर आपको लगता है कि शेयर का मूल्य बढ़ेगा, तो आप फ्यूचर्स या कॉल ऑप्शन खरीद सकते हैं।
  • आर्बिट्राज (Arbitrage): यह दो बाजारों के बीच मूल्य अंतर से लाभ कमाने की रणनीति है।

ट्रेडिंग के बाद, ये कॉन्ट्रैक्ट्स एक निश्चित तारीख पर सेटल होते हैं, जिसे "एक्सपायरी डेट" कहते हैं।


डेरिवेटिव मार्केट में प्रतिभागी (Participants in the Derivatives Market)

डेरिवेटिव मार्केट में कई तरह के लोग हिस्सा लेते हैं:

  1. हेजर्स (Hedgers): ये निवेशक अपने जोखिम को कम करने के लिए डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल करते हैं।
  2. स्पेक्युलेटर्स (Speculators): ये ट्रेडर्स मूल्य के उतार-चढ़ाव से लाभ कमाते हैं।
  3. आर्बिट्राजर्स (Arbitrageurs): ये बाजारों के बीच मूल्य अंतर से फायदा उठाते हैं।
  4. मार्केट मेकर्स (Market Makers): ये संस्थान बाजार में लिक्विडिटी प्रदान करते हैं।

डेरिवेटिव ट्रेडिंग के फायदे (Advantages of Derivatives Trading)

  1. जोखिम प्रबंधन: डेरिवेटिव्स से निवेशक अपने नुकसान को सीमित कर सकते हैं।
  2. लिवरेज: आप कम पूंजी से बड़ी ट्रेडिंग कर सकते हैं।
  3. मूल्य खोज: यह भविष्य के मूल्य का अनुमान लगाने में मदद करता है।
  4. बाजार दक्षता: इससे बाजार में मूल्य सही तरीके से निर्धारित होते हैं।

डेरिवेटिव ट्रेडिंग में जोखिम (Risks Involved in Derivatives Trading)

  1. बाजार जोखिम: मूल्य में बदलाव से नुकसान हो सकता है।
  2. लिवरेज जोखिम: ज्यादा लिवरेज से नुकसान भी बड़ा हो सकता है।
  3. लिक्विडिटी जोखिम: कुछ कॉन्ट्रैक्ट्स को बेचना मुश्किल हो सकता है।
  4. काउंटरपार्टी जोखिम: OTC ट्रेडिंग में दूसरी पार्टी के डिफॉल्ट का खतरा होता है।

डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे शुरू करें? (How to Start Trading in Derivatives)

  1. डिमैट और ट्रेडिंग खाता: सबसे पहले एक ब्रोकर के पास खाता खोलें।
  2. अनुमति: डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए ब्रोकर से अनुमति लें।
  3. मार्जिन: ट्रेडिंग के लिए मार्जिन राशि जमा करें।
  4. प्लेटफॉर्म: ब्रोकर के ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करें।
  5. जोखिम प्रबंधन: स्टॉप-लॉस जैसे तरीकों से जोखिम कम करें।

निष्कर्ष (Conclusion)

डेरिवेटिव मार्केट स्टॉक मार्केट का एक अहम हिस्सा है। यह निवेशकों को जोखिम प्रबंधन और लाभ कमाने के अवसर देता है। लेकिन इसमें जोखिम भी हैं, इसलिए ट्रेडिंग से पहले अच्छी जानकारी और सावधानी जरूरी है।