स्टॉक मार्केट एक ऐसी जगह है जहाँ लोग अपने पैसे को बढ़ाने के लिए निवेश करते हैं। यहाँ कई तरह के वित्तीय साधन मौजूद हैं, जिनमें से एक है "फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स"। अगर आप स्टॉक मार्केट में नए हैं या पहले से ट्रेडिंग कर रहे हैं, तो आपने "फ्यूचर्स" शब्द जरूर सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह असल में क्या है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है? फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स स्टॉक मार्केट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो निवेशकों और ट्रेडर्स को भविष्य में होने वाले मूल्य बदलाव से फायदा उठाने या जोखिम से बचने का मौका देते हैं। इस लेख में हम फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को आसान भाषा में समझेंगे। हम देखेंगे कि ये क्या हैं, कैसे काम करते हैं, इनके फायदे और जोखिम क्या हैं, और इन्हें शुरू करने का तरीका क्या है। तो चलिए शुरू करते हैं।


फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स क्या हैं? (What Are Futures Contracts?)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स एक तरह का वित्तीय समझौता होता है, जो दो लोगों या पक्षों के बीच किया जाता है। इसमें यह तय होता है कि भविष्य में किसी खास तारीख पर एक निश्चित कीमत पर कोई चीज खरीदी या बेची जाएगी। यह चीज कुछ भी हो सकती है, जैसे स्टॉक, कमोडिटी (जैसे सोना, चांदी, तेल), या कोई इंडेक्स (जैसे निफ्टी 50 या सेंसेक्स)। आसान शब्दों में कहें तो फ्यूचर्स एक ऐसा वादा है, जिसमें आप आज यह तय करते हैं कि भविष्य में आप कुछ खरीदेंगे या बेचेंगे, और उसकी कीमत अभी ही फिक्स कर लेते हैं।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप एक कंपनी के शेयर का फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं। आज उस शेयर की कीमत ₹200 है, और आप एक महीने बाद खत्म होने वाला कॉन्ट्रैक्ट लेते हैं। इसका मतलब है कि एक महीने बाद आपको वह शेयर ₹200 पर ही खरीदना होगा, चाहे उस समय उसकी कीमत बाजार में ₹250 हो या ₹150। इसी तरह, अगर आप बेचने का कॉन्ट्रैक्ट लेते हैं, तो आप उसे ₹200 पर बेचेंगे, भले ही बाजार में कीमत कुछ भी हो।

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आपको भविष्य के मूल्य बदलाव से फायदा कमाने या नुकसान से बचने का मौका देता है। लेकिन इसके साथ कुछ जोखिम भी जुड़े हैं, जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे।


फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के मुख्य तत्व (Key Elements of Futures Contracts)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को अच्छे से समझने के लिए इसके कुछ बुनियादी हिस्सों को जानना जरूरी है। ये हिस्से हर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में मौजूद होते हैं और इन्हें समझने से आपको ट्रेडिंग में आसानी होगी।

  1. अंतर्निहित संपत्ति (Underlying Asset): यह वह चीज है जिसके आधार पर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर आप रिलायंस कंपनी के शेयर का फ्यूचर्स लेते हैं, तो रिलायंस का शेयर आपकी अंतर्निहित संपत्ति है। यह स्टॉक, इंडेक्स, कमोडिटी, या मुद्रा कुछ भी हो सकता है।
  2. समाप्ति तिथि (Expiry Date): हर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की एक निश्चित तारीख होती है, जिस दिन वह खत्म हो जाता है। भारत में ज्यादातर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स महीने के आखिरी गुरुवार को खत्म होते हैं। अगर आप उस तारीख तक कॉन्ट्रैक्ट को बेच नहीं देते, तो यह अपने आप सेटल हो जाता है।
  3. कॉन्ट्रैक्ट साइज (Contract Size): यह बताता है कि एक कॉन्ट्रैक्ट में कितनी मात्रा होगी। जैसे, निफ्टी फ्यूचर्स में एक कॉन्ट्रैक्ट 50 यूनिट का होता है। अगर निफ्टी की कीमत 18,000 है, तो एक कॉन्ट्रैक्ट का मूल्य ₹9,00,000 होगा।
  4. मार्जिन (Margin): फ्यूचर्स में आपको पूरी कीमत देने की जरूरत नहीं होती। इसके बजाय, आपको एक छोटी राशि जमा करनी पड़ती है, जिसे मार्जिन कहते हैं। यह आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट के मूल्य का 10-20% होता है।

इन तत्वों को समझने से आपको यह पता चलता है कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स में क्या-क्या शामिल होता है और यह कैसे काम करता है।


फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स कैसे काम करते हैं? (How Do Futures Contracts Work?)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं, जैसे कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)। यहाँ ट्रेडर्स इन कॉन्ट्रैक्ट्स को खरीदते और बेचते हैं। फ्यूचर्स का इस्तेमाल दो बड़े कारणों से किया जाता है:

  1. हेजिंग (Hedging): इसका मतलब है जोखिम से बचाव। मान लीजिए आपके पास 100 शेयर हैं, और आपको लगता है कि अगले महीने उनकी कीमत गिर सकती है। आप फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट बेच सकते हैं। अगर कीमत सचमुच गिरती है, तो फ्यूचर्स से होने वाला लाभ आपके नुकसान की भरपाई कर देगा।
  2. स्पेक्युलेशन (Speculation): यह कीमत के बदलाव से फायदा कमाने के लिए किया जाता है। अगर आपको लगता है कि किसी शेयर की कीमत बढ़ने वाली है, तो आप उसका फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीद सकते हैं और बाद में ऊंची कीमत पर बेच सकते हैं।

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की ट्रेडिंग के बाद, यह समाप्ति तिथि पर सेटल होता है। सेटलमेंट दो तरह से हो सकता है:

  • नकद सेटलमेंट: इसमें आपको असली शेयर या संपत्ति देने की जरूरत नहीं होती। बस अंतर की राशि का लेन-देन होता है।
  • फिजिकल डिलीवरी: इसमें असली संपत्ति की डिलीवरी होती है, लेकिन स्टॉक मार्केट में यह कम होता है।

भारत में ज्यादातर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स नकद सेटलमेंट के जरिए खत्म होते हैं।


फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के प्रकार (Types of Futures Contracts)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स कई तरह के होते हैं, जो उनकी अंतर्निहित संपत्ति पर आधारित होते हैं। यहाँ कुछ मुख्य प्रकार हैं:

  1. स्टॉक फ्यूचर्स: यह किसी खास कंपनी के शेयर पर आधारित होते हैं, जैसे टाटा मोटर्स या रिलायंस।
  2. इंडेक्स फ्यूचर्स: यह बाजार के इंडेक्स पर आधारित होते हैं, जैसे निफ्टी 50 या सेंसेक्स। ये बहुत लोकप्रिय हैं।
  3. कमोडिटी फ्यूचर्स: यह सोना, चांदी, तेल, या गेहूं जैसी चीजों पर आधारित होते हैं।
  4. करेंसी फ्यूचर्स: यह मुद्राओं पर आधारित होते हैं, जैसे डॉलर बनाम रुपया।

भारत में स्टॉक और इंडेक्स फ्यूचर्स सबसे ज्यादा ट्रेड किए जाते हैं, खासकर निफ्टी फ्यूचर्स।


फ्यूचर्स ट्रेडिंग के फायदे (Benefits of Futures Trading)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स का इस्तेमाल करने के कई फायदे हैं, जो इसे ट्रेडर्स और निवेशकों के बीच लोकप्रिय बनाते हैं:

  1. लिवरेज का फायदा: आप कम पैसे से बड़ी ट्रेड कर सकते हैं। जैसे, ₹9 लाख के कॉन्ट्रैक्ट के लिए आपको सिर्फ ₹90,000 का मार्जिन देना पड़ सकता है।
  2. जोखिम से बचाव: यह आपको बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद करता है।
  3. लचीलापन: आप कीमत बढ़ने या गिरने, दोनों से फायदा कमा सकते हैं।
  4. पारदर्शिता: स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग होने से सब कुछ नियमों के तहत और सुरक्षित होता है।
  5. लिक्विडिटी: फ्यूचर्स मार्केट में खरीदने और बेचने वाले बहुत होते हैं, जिससे ट्रेडिंग आसान होती है।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग में जोखिम (Risks in Futures Trading)

हर चीज के फायदे के साथ कुछ जोखिम भी होते हैं, और फ्यूचर्स ट्रेडिंग भी इससे अलग नहीं है। यहाँ कुछ मुख्य जोखिम हैं:

  1. बाजार जोखिम: अगर कीमत आपके अनुमान के उलट गई, तो नुकसान हो सकता है।
  2. लिवरेज का खतरा: लिवरेज से फायदा बड़ा हो सकता है, लेकिन नुकसान भी उतना ही बड़ा हो सकता है।
  3. समय की सीमा: फ्यूचर्स की एक निश्चित तारीख होती है। अगर आप सही समय पर बाहर नहीं निकले, तो नुकसान हो सकता है।
  4. अनुभव की कमी: बिना जानकारी के ट्रेडिंग करने से गलतियां हो सकती हैं।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे शुरू करें? (How to Start Futures Trading?)

अगर आप फ्यूचर्स ट्रेडिंग शुरू करना चाहते हैं, तो यहाँ कुछ आसान कदम हैं:

  1. डिमैट और ट्रेडिंग खाता खोलें: किसी अच्छे ब्रोकर (जैसे Zerodha, Upstox) के पास खाता बनाएं।
  2. फ्यूचर्स ट्रेडिंग की अनुमति लें: अपने ब्रोकर से फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) सेगमेंट को सक्रिय करें।
  3. बाजार की जानकारी लें: निफ्टी, सेंसेक्स, या अपने पसंदीदा स्टॉक के रुझानों को समझें।
  4. मार्जिन जमा करें: ट्रेडिंग शुरू करने के लिए कुछ राशि जमा करें।
  5. रणनीति बनाएं: स्टॉप-लॉस और टारगेट सेट करें ताकि नुकसान कम हो और फायदा तय हो।
  6. छोटे से शुरू करें: पहले छोटे कॉन्ट्रैक्ट्स से ट्रेडिंग शुरू करें और अनुभव बढ़ाएं।

उदाहरण से समझें (Understanding with an Example)

मान लीजिए आप निफ्टी फ्यूचर्स में ट्रेड करना चाहते हैं। आज निफ्टी 18,000 पर है। आप एक कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं, जिसमें 50 यूनिट्स हैं। इसका कुल मूल्य ₹9,00,000 (18,000 × 50) है, लेकिन आपको सिर्फ 10% मार्जिन, यानी ₹90,000 जमा करना होगा।

  • अगर निफ्टी बढ़ता है: एक हफ्ते बाद निफ्टी 18,500 हो जाता है। आपका लाभ ₹25,000 (500 × 50) होगा।
  • अगर निफ्टी गिरता है: निफ्टी 17,500 पर चला जाता है। आपको ₹25,000 का नुकसान होगा।

इस उदाहरण से समझ आता है कि फ्यूचर्स में कम पैसे से बड़ा फायदा या नुकसान हो सकता है।


भारत में फ्यूचर्स ट्रेडिंग का इतिहास (History of Futures Trading in India)

भारत में फ्यूचर्स ट्रेडिंग की शुरुआत 2000 में हुई, जब NSE ने इंडेक्स फ्यूचर्स को लॉन्च किया। पहला कॉन्ट्रैक्ट निफ्टी 50 पर आधारित था। इसके बाद स्टॉक फ्यूचर्स और कमोडिटी फ्यूचर्स भी शुरू हुए। आज भारत का डेरिवेटिव्स मार्केट दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है।


फ्यूचर्स और ऑप्शंस में अंतर (Difference Between Futures and Options)

फ्यूचर्स और ऑप्शंस दोनों डेरिवेटिव्स हैं, लेकिन इनमें अंतर है:

  • फ्यूचर्स: आपको खरीदने या बेचने की मजबूरी होती है।
  • ऑप्शंस: आपको अधिकार मिलता है, लेकिन मजबूरी नहीं।

निष्कर्ष (Conclusion)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स स्टॉक मार्केट में एक शक्तिशाली और उपयोगी साधन हैं। यह आपको जोखिम से बचाने और फायदा कमाने का मौका देते हैं। लेकिन इसके लिए सही जानकारी, रणनीति, और अनुशासन जरूरी है। अगर आप इसे समझकर सही तरीके से इस्तेमाल करें, तो यह आपके निवेश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।